वो ख़ुश अंदाज़ ओ ख़ुश अतवार कहीं मिलते हैं
ज़िंदगी तेरे परस्तार कहीं मिलते हैं,
जैसे एक मोड़ पे मिलते हैं कहीं शाम ओ सहर
उस तरह भी दिल ओ दिलदार कहीं मिलते हैं,
जैसी आँखें हैं तेरी और ये दिल है जैसा
ऐसे शर्मिंदा ए इज़हार कहीं मिलते हैं,
एक दीवाना ए दुनिया का था जन्नत से सवाल
क्या यहाँ दिरहम ओ दीनार कहीं मिलते हैं,
किसी बाज़ार में मिलती है जुनूँ नाम की शय
हौसले इश्क़ के तैयार कहीं मिलते हैं,
ढूँढ़ ले ढूँढ़ सके कोई अगर राह ए फ़रार
एक जानिब दर ओ दीवार कहीं मिलते हैं,
तुम से मिलना भी है मिलना भी नहीं है तुम से
आओ तुम से सर ए बाज़ार कहीं मिलते हैं,
या तेरी बज़्म में हैं या मेरे दिल में अजमल
ज़िंदगी के अगर आसार कहीं मिलते हैं..!!
~अजमल सिराज
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