जानते सब है मुझे, पहचानता कोई नहीं

आशना होते हुए भी आशना कोई नहीं
जानते सब है मुझे, पहचानता कोई नहीं,

तन्हा मेरे ज़िम्मे क्यूँ है कार ए एहतिजाज़
बोलना सब जानते है, बोलता कोई नहीं,

मयकशी की भी सजा है, ख़ुदकुशी की भी सजा
कौन किस मुश्किल में है, ये देखता कोई नहीं,

मुख्तलिफ़ लफ्ज़ो में ये है अब मिजाज़ ए दोस्ती
राब्ता सबसे है, लेकिन वास्ता कोई नहीं,

हमने ख़ुद पैदा किये है ज़िन्दगी में मसअले
वरना सच्ची बात ये है मसअला कोई नहीं,

ख़ुद क़लामी थी जिसे मैं गुफ़्तगू समझा किया
मैं अकेला था, यहाँ आया गया कोई नहीं,

हुस्न हो ना मेहरबाँ या इश्क़ ख़ुद बे मेहर हो
हार दोनों की है इसमें जीतता कोई नहीं,

एक पत्थर आज मेरी आँख पर आ कर लगा
मैं गलत समझा, मुझे पहचानता कोई नहीं..!!

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