किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझको एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी,
मेरे रुकते ही मेरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी,
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालो
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी,
चलती राहों में यूँही आँख लगी है फ़ाकिर
भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी..!!
~सुदर्शन फ़ाकिर