झूठी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

झूठी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए
धुंदली ही सही लेकिन एक शम्अ तो जल जाए,

इस मौज की टक्कर से साहिल भी लरज़ता है
कुछ रोज़ तो तूफ़ाँ की आग़ोश में पल जाए,

मजबूरी ए साक़ी भी ऐ तिश्नालबो समझो
वाइज़ का ये मंशा है मयख़्वारों में चल जाए,

ऐ जल्वा ए जानाना फिर ऐसी झलक दिखला
हसरत भी रहे बाक़ी अरमाँ भी निकल जाए,

इस वास्ते छेड़ा है परवानों का अफ़्साना
शायद तेरे कानों तक पैग़ाम ए अमल जाए,

मयख़ाना ए हस्ती में मै कश वही मै कश है
सँभले तो बहक जाए बहके तो सँभल जाए,

हम ने तो फ़ना इतना मफ़्हूम ए ग़ज़ल समझा
ख़ुद ज़िंदगी ए शाइर अशआर में ढल जाए..!!

~फ़ना निज़ामी कानपुरी

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