बड़ी मुश्किल हैं राहें सुन मोहब्बत की ज़माने में
कि पल पल मरना पड़ता है इसे दिल से निभाने में,
मोहब्बत से मिले ज़ख़्मों को मैं गौहर समझता हूँ
इज़ाफ़ा ही इज़ाफ़ा है मेंरे दिल के ख़ज़ाने में,
ज़रूरत ये नहीं है तुम जिसे चाहो तुम्हें चाहे
कोई तुम शर्त मत रखना मोहब्बत आज़माने में,
कोई शिद्दत से चाहे तो कभी मग़रूर मत होना
दिखावे की मोहब्बत का चलन है इस ज़माने में,
ज़रूरत की मोहब्बत में कोई शिद्दत नहीं होती
छलावा ही छलावा है उसे अपना बनाने में,
मोहब्बत गर नहीं मुझ से तो ख़्वाबों में भी मत आओ
मज़ा आता है क्या तुम को मेंरा दिल यूँ जलाने में ?
कभी मजनूँ से पूछो तुम कभी इरशाद से पूछो
बड़ा ही लुत्फ़ आता है जिगर पर तीर खाने में..!!
~इरशाद अज़ीज़
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