ये जो शब के ऐवानों में इक हलचल एक हश्र बपा है

ये जो शब के ऐवानों में इक हलचल एक हश्र बपा है
ये जो अंधेरा सिमट रहा है ये जो उजाला फैल रहा है,

ये जो हर दुख सहने वाला दुख का मुदावा जान गया है
मज़लूमों मजबूरों का ग़म ये जो मेरे शेरों में ढला है,

ये जो महक गुलशन गुलशन है ये जो चमक आलम आलम है
मार्कसिज़्म है मार्कसिज़्म है मार्कसिज़्म है मार्कसिज़्म है..!!

~हबीब जालिब

तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है

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