वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी
अजीब शख़्स है अपना भी है पराया भी,
ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था
दीयाजलाया भी मैंने दीया बुझाया भी,
मैं चाहता हूँ ठहर जाए चश्म ए दरिया में
लरज़ता अक्स तुम्हारा भी मेरा साया भी,
बहुत महीन था पर्दा लरज़ती आँखों का
मुझे दिखाया भी तू ने मुझे छुपाया भी,
बयाज़ भर भी गई और फिर भी सादा है
तुम्हारे नाम को लिखा भी और मिटाया भी..!!
~आनिस मुईन
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