राक्षस था न ख़ुदा था पहले
आदमी कितना बड़ा था पहले,
आसमाँ खेत समुंदर सब लाल
ख़ून काग़ज़ पे उगा था पहले,
मैं वो मक़्तूल जो क़ातिल न बना
हाथ मेरा भी उठा था पहले,
अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले,
शहर तो बाद में वीरान हुआ
मेरा घर ख़ाक हुआ था पहले..!!
~निदा फ़ाज़ली
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