क़ैद शीशे में रहूँ अक्स बनूँ शाद रहूँ
या कि फिर फोड़ के ये आइना आज़ाद रहूँ
यूँ ही जीता रहूँ गुमनाम अँधेरों में कहीं
या करूँ सुब्ह कोई ऐसी कि मैं याद रहूँ
या तो ईजाद करूँ अपने जहान ए नौ की
या तो खंडर में मेरे अपने ही बर्बाद रहूँ
घोंट दूँ अपनी समाअत का गला तो कुछ हो
वर्ना दिल की फ़ुग़ाँ में कैसे मैं आबाद रहूँ
है निदा बन के निकलना सो ज़बाँ से तेरी
जो रहूँ अपनी ज़बाँ पे ही तो फ़रियाद रहूँ
ऐ मेरे दोस्त ये अशआर सँभाले रखना
आरज़ू है मैं तेरे साथ मेरे बाद रहूँ..!!
~नवीन जोशी

























