मेरी ज़िंदगी है ज़ालिम तेरे ग़म से आश्कारा

मेरी ज़िंदगी है ज़ालिम तेरे ग़म से आश्कारा
तेरा ग़म है दर हक़ीक़त मुझे ज़िंदगी से प्यारा,

वो अगर बुरा न मानें तो जहान ए रंग ओ बू में
मैं सुकून ए दिल की ख़ातिर कोई ढूँढ लूँ सहारा,

मुझे तुझ से ख़ास निस्बत मैं रहीन ए मौज ए तूफ़ाँ
जिन्हें ज़िंदगी थी प्यारी उन्हें मिल गया किनारा,

मुझे आ गया यक़ीं सा कि यही है मेरी मंज़िल
सर ए राह जब किसी ने मुझे दफ़अतन पुकारा,

ये ख़ुनुक ख़ुनुक हवाएँ ये झुकी झुकी घटाएँ
वो नज़र भी क्या नज़र है जो समझ न ले इशारा,

मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझ में और तुझ में
मेरी ज़िंदगी तलातुम तेरी ज़िंदगी किनारा,

मुझे फ़ख़्र है इसी पर ये करम भी है मुझी पर
तेरी कम निगाहियाँ भी मुझे क्यूँ न हों गवारा ?

मुझे गुफ़्तुगू से बढ़ कर ग़म ए इज़्न ए गुफ़्तुगू है
वही बात पूछते हैं जो न कह सकूँ दोबारा,

कोई ऐ शकील पूछे ये जुनूँ नहीं तो क्या है
कि उसी के हो गए हम जो न हो सका हमारा..!!

~शकील बदायूनी

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