मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में
मुरझा के आ गिरा हूँ मगर सर्द घास में,
सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूह
देखो तो एक शिकन भी नहीं है लिबास में,
सहरा की बूद ओ बाश है अच्छी न क्यूँ लगे
सूखी हुई गुलाब की टहनी गिलास में,
चमके नहीं नज़र में अभी नक़्श दूर के
मसरूफ़ हूँ अभी अमल ए इनइकास में,
धोखे से उस हसीं को अगर चूम भी लिया
पाओगे दिल का ज़हर लबों की मिठास में,
तारा कोई रिदा ए शब ए अब्र में न था
बैठा था मैं उदास बयाबान ए यास में,
जू ए रवान ए दश्त अभी सूखना नहीं
सावन है दूर और वही शिद्दत है प्यास में,
रहता था सामने तेरा चेहरा खुला हुआ
पढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में,
काँटों की बाड़ फाँद गया था मगर शकेब
रस्ता न मिल सका मुझे फूलों की बास में..!!
~शकेब जलाली

























