क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता,
तू छोड़ रहा है तो ख़ता इस में तेरी क्या
हर शख़्स मेंरा साथ निभा भी नहीं सकता,
प्यासे रहे जाते हैं ज़माने के सवालात
किस के लिए ज़िंदा हूँ बता भी नहीं सकता,
घर ढूँढ रहे हैं मेंरा रातों के पुजारी
मैं हूँ कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता,
वैसे तो एक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता..!!
~वसीम बरेलवी