कोई हसरत कोई अरमान नहीं रखते हैं

कोई हसरत कोई अरमान नहीं रखते हैं
हम तो मुद्दत से ये सामान नहीं रखते हैं,

ज़ख़्म रखते हैं न रखते हैं निशाँ अब कोई
चाक हो ऐसा गरेबान नहीं रखते हैं,

बेहिसी का ये हमारी ज़रा आलम देखो
जिस्म रखते है मगर जान नहीं रखते हैं,

हम से अग़्यार की पहचान कहाँ सँभलेगी
जब हम अपनों की ही पहचान नहीं रखते हैं,

हम समुंदर को तो महकूम नहीं रख सकते
हाँ मगर कश्ती में तूफ़ान नहीं रखते हैं,

जब से मुश्किल हुए हैं तब से सुकूँ है सो अब
ख़ुद को दानिस्ता ही आसान नहीं रखते हैं..!!

~नवीन जोशी

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