कोई आरज़ू नहीं है कोई मुद्दआ नहीं है

कोई आरज़ू नहीं है कोई मुद्दआ नहीं है
तेरा ग़म रहे सलामत मेरे दिल में क्या नहीं है ?

कहाँ जाम ए ग़म की तल्ख़ी कहाँ ज़िंदगी का दरमाँ
मुझे वो दवा मिली है जो मेरी दवा नहीं है,

तू बचाए लाख दामन मेरा फिर भी है ये दावा
तेरे दिल में मैं ही मैं हूँ कोई दूसरा नहीं है,

तुम्हें कह दिया सितमगर ये क़ुसूर था ज़बाँ का
मुझे तुम मुआफ़ कर दो मेरा दिल बुरा नहीं है,

मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे
ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है,

ये उदास उदास चेहरे ये हसीं हसीं तबस्सुम
तेरी अंजुमन में शायद कोई आइना नहीं है,

मेरी आँख ने तुझे भी बख़ुदा शकील पाया
मैं समझ रहा था मुझ सा कोई दूसरा नहीं है..!!

~शकील बदायूनी

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