हम पस ए वहम ओ गुमाँ भी देख लेते हैं तुझे

हम पस ए वहम ओ गुमाँ भी देख लेते हैं तुझे
देखने वाले यहाँ भी देख लेते हैं तुझे,

देख लेते हैं तुझे दिल के दरीचे खोल कर
तोड़ कर दीवार ए जाँ भी देख लेते हैं तुझे,

देख लेते हैं तुझे हम तो तह ए गिर्दाब भी
और पस ए मौज ए रवाँ भी देख लेते हैं तुझे,

देख लेते हैं तुझे हम क़हक़हों की गूँज में
आँसुओं के दरमियाँ भी देख लेते हैं तुझे,

देखते हैं जब तुझे हम तो हमारे साथ साथ
ये ज़मीन ओ आसमाँ भी देख लेते हैं तुझे,

चलते रहते हैं जहाँ तक तू नज़र आता नहीं
ठहर जाते हैं जहाँ भी देख लेते हैं तुझे,

बात तो ये है कि अजमल तू कहाँ होता नहीं
तू कहीं भी हो कहाँ भी देख लेते हैं तुझे..!!

~अजमल सिराज


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