हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया
उसने भी भूल जाने का वादा नहीं किया,
दुख ओढ़ते नहीं कभी बज़्म ए तरब में हम
मल्बूस ए दिल को तन का लबादा नहीं किया,
जो ग़म मिला है बोझ उठाया है उस का ख़ुद
सर ज़ेर ए बार ए साग़र ओ बादा नहीं किया,
कार ए जहाँ हमें भी बहुत थे सफ़र की शाम
उस ने भी इल्तिफ़ात ज़ियादा नहीं किया,
आमद पे तेरी इत्र ओ चराग़ ओ सुबू न हों
इतना भी बूद ओ बाश को सादा नहीं किया..!!
~परवीन शाकिर