दुश्वार है इस अंजुमन आरा को समझना
तन्हा न कभी तुम दिल ए तन्हा को समझना,
हो जाए तो हो जाए इज़ाफ़ा ग़म ए दिल में
क्या अक़्ल से सौदा ए तमन्ना को समझना,
एक लम्हा ए हैरत के सिवा कुछ भी नहीं है
कुछ और न इस तुंदी ए दरिया को समझना,
कुछ तेज़ हवाओं ने भी दुश्वार किया है
क़दमों के निशानात से सहरा को समझना..!!
~अजमल सिराज
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