दिल करे जब आप का मुझ को रुलाया कीजिए
आप ग़म की ये दवा मेरे ख़ुदारा कीजिए,
लुत्फ़ आए आप को सारे जहाँ से जीत का
मेरे जैसे जान कर ख़ुद से ही हारा कीजिए,
क्या करोगी ख़्वाब में मुझ को बुला कर सोच लो
हो रहा है जिस तरह अपना गुज़ारा कीजिए,
आइना गर से जो पूछा देखी है सूरत कभी
मुस्कुरा कर बोला इस को पारा पारा कीजिए,
शिकवा ए बेदाद ख़ुद से कीजिए अब और क्या
जब किया मैंने यक़ीं तो आप धोका कीजिए,
मैं तो इक शाइर हूँ आख़िर आप के किस काम का
गर समझ में कुछ न आए इस्तिख़ारा कीजिए,
रू ब रू ग़म से कराया आप को तो ख़ुश रहें
जी में आए आप के अब जो भी यारा कीजिए..!!
~इरशाद अज़ीज़

























