किसी की ना सुनिए ख़ुद की सुनाते जाइए
किसी की ना सुनिए ख़ुद की सुनाते जाइए आप जो है ख़ुद वही सबको बनाते जाइए, मुर्दा ज़मीरो
Political Poetry
किसी की ना सुनिए ख़ुद की सुनाते जाइए आप जो है ख़ुद वही सबको बनाते जाइए, मुर्दा ज़मीरो
क्या ? खज़ूर के पेड़ो में झुकाव आ गया ज़नाब ! लगता है शहर में चुनाव आ गया,
राजनीति की राह में तो ये करते है वादे हज़ार निभाने की बारी जब भी आये हो जाते
हिन्द का आज़ाद हो जाना कोई आसाँ नहीं देखना तुम को अभी क्या क्या दिखाया जाएगा, देखना तुम
इंसाफ ज़ालिमों की हिमायत में जायेगा ये हाल है तो कौन अदालत में जायेगा ? दस्तार नोच नोच
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया, एक इश्क़
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है, इतनी ख़ूँ-ख़ार
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन
दिल से मंज़ूर तेरी हम ने क़यादत नहीं की ये अलग बात अभी खुल के बग़ावत नहीं की,
नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया ग़ुलाम शाह की नींदें हराम कर आया, कई चराग़ हवा