मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ

main-jab-bhi-koi-achhuta

मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ तो पहले एक गज़ल तेरे नाम लिखता हूँ, बदन की

काम उसके सारे ही सय्याद वाले है…

kaam-uske-saare-hi

काम उसके सारे ही सय्याद वाले है मगर मैं उसे बहेलिया नहीं लिखता सर्दियाँ जितनी हो सब सह

हम न निकहत हैं न गुल हैं जो महकते जावें

ham-na-nikhat-hai

हम न निकहत हैं न गुल हैं जो महकते जावें आग की तरह जिधर जावें दहकते जावें, ऐ

अपने घर की चारदीवारी में अब…

apne-ghar-ki-chaardeewari

अपने घर की चारदीवारी में अब लिहाफ़ में भी सिहरन होती है जिस दिन से किसी को गुर्बत

ज़िस्म क्या है ? रूह तक सब कुछ….

zism kya hai ruh tak sab kuch khulasa dekhiye

ज़िस्म क्या है ? रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिए आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा

अँधेरा सफ़र है ख़बरदार रहना…

andhera-safar-hai-khabardar

अँधेरा सफ़र है ख़बरदार रहना लुटेरा शहर है ख़बरदार रहना, गला काटतें है बड़ी सादगी से ये इनका

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है

ghar-me-thande-chulhe

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है

उनका दावा मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया

unka-daava-muflisi-ka

उनका दावा, मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया पर हकीक़त ये है मौसम और बदतर हो गया, बंद

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं

shaam-ko-jis-waqt

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते है बच्चे और मर जाता हूँ

जाने किस करनी का फल होगा

jaane-kis-karni-ka

जाने किस करनी का फल होगा कैसी फिजा, कैसे मौसम में जागे हम ? शहरों से सेहराओ तक