मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ तो पहले एक गज़ल तेरे नाम लिखता हूँ, बदन की
Life Status
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ तो पहले एक गज़ल तेरे नाम लिखता हूँ, बदन की
काम उसके सारे ही सय्याद वाले है मगर मैं उसे बहेलिया नहीं लिखता सर्दियाँ जितनी हो सब सह
हम न निकहत हैं न गुल हैं जो महकते जावें आग की तरह जिधर जावें दहकते जावें, ऐ
अपने घर की चारदीवारी में अब लिहाफ़ में भी सिहरन होती है जिस दिन से किसी को गुर्बत
ज़िस्म क्या है ? रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिए आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा
अँधेरा सफ़र है ख़बरदार रहना लुटेरा शहर है ख़बरदार रहना, गला काटतें है बड़ी सादगी से ये इनका
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है
उनका दावा, मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया पर हकीक़त ये है मौसम और बदतर हो गया, बंद
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते है बच्चे और मर जाता हूँ
जाने किस करनी का फल होगा कैसी फिजा, कैसे मौसम में जागे हम ? शहरों से सेहराओ तक