महफ़िल से मुझको उठाने के बाद
महफ़िल से मुझको उठाने के बाद क्या मिलेगा दिल दुखाने के बाद, आज तो देख लूँ मैं तुम्हे
Life Poetry
महफ़िल से मुझको उठाने के बाद क्या मिलेगा दिल दुखाने के बाद, आज तो देख लूँ मैं तुम्हे
अपने हो कर भी जो नहीं मिलते दिल ये जा कर है क्यूँ वही मिलते ? यहाँ मिलती
यूँ बात बात पे कर के मुकालमा मुझसे वो खुल रहा है मुसलसल ज़रा ज़रा मुझसे, मैं शाख
तेरे लिए सब छोड़ के भी तेरा न रहा मैं दुनियाँ भी गई इश्क़ में, तुझसे भी गया
ख़ुद को न ऐ बशर कभी क़िस्मत पे छोड़ तू दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़
दर्द हो, दुःख हो तो दवा कीजिए फट पड़े आसमां तो क्या कीजिए ? नहीं इलाज़ ए गम
जब लहज़े बदल जाएँ तो वज़ाहते कैसी नयी मयस्सर हो जाएँ तो पुरानी चाहतें कैसी ? वस्ल में
जब भी तुम चाहो मुझे ज़ख्म नया देते रहो बाद में फिर मुझे सहने की दुआ देते रहो,
अब भी कहता हूँ कि तुम्हे घबराना नहीं है घबरा कर कोई गलत क़दम उठाना नहीं है, हुनूज़
रात पिघली है तेरे सुरमई आँचल की तरह चाँद निकला है तुझे ढूँढने पागल की तरह, ख़ुश्क पत्तों