हमारे जैसे तुम्हे ख़राबो में मिलेंगे
हमारे जैसे तुम्हे ख़राबो में मिलेंगे धुल पड़ी कहीं किताबो में मिलेंगे, ज़फागर से किये वफ़ाओ में मिलेंगे …
हमारे जैसे तुम्हे ख़राबो में मिलेंगे धुल पड़ी कहीं किताबो में मिलेंगे, ज़फागर से किये वफ़ाओ में मिलेंगे …
दर्द हो या कि रंज़ ओ गम हर हाल में मुस्कुराते चलो गैरों की ख़ुशी की खातिर रस्म …
जला के मिशअल ए जाँ हम जुनूँ सिफ़ात चले जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले, दयार …
यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो अपने ही गले के लिए तलवार न माँगो, गिर जाओगे …
ये दौर ए ख़िरद है दौर ए जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है अँगूर की मय के …
हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़्यादा चाक किए हैं हम ने अज़ीज़ो …
कभी ख़ुद कभी औरो को हटाते रहिए बस यूँ ही रास्तो को सहल बनाते रहिए, कही उठ जाइए …
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं ? …
कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा, शाम …
किताब सादा रहेगी कब तक ? कभी तो आगाज़ ए बाब होगा, जिन्होंने बस्तियाँ उजाड़ी है कभी तो …