आह को चाहिए एक उम्र असर होते तक

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक,

दाम ए हर मौज में है हल्क़ा ए सद काम ए नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक,

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून ए जिगर होते तक,

ताक़यामत शब ए फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक,

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक,

परतव ए ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक,

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत ए हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी ए बज़्म है एक रक़्स ए शरर होते तक,

ग़म ए हस्ती का असद किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक..!!

~मिर्ज़ा ग़ालिब

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