थक गया है मुसलसल सफ़र उदासी का
और अब भी है मेरे शाने पे सर उदासी का,
वो कौन कीमियागर था के जो बिखेर गया
तेरे गुलाब से चेहरे पे ज़र उदासी का,
मेरे वजूद के खि़ल्वतक़दे में कोई तो था
जो रख गया है दीया ताक़ पर उदासी का,
मैं तुझसे कैसे कहूँ ऐ यार ए मेहरबां मेरे
के तू ही इलाज़ है मेरी हर उदासी का,
ये अब जो आग का दरिया मेरे वजूद में है
यही तो पहले पहल था शरार उदासी का,
ना जाने आज कहाँ खो गया सितार ए शाम
वो मेरा दोस्त, मेरा हमसफ़र उदासी का,
‘फ़राज़’ दीदा ए पुराब में ना ढूंढ उसे,
के दिल की तह में कहीं है गोहर उदासी का..!!
~अहमद फ़राज़