ज़बाँ का पास है तो क़ौल सब निभाने हैं

ज़बाँ का पास है तो क़ौल सब निभाने हैं
अगर मुकरने पे आऊँ तो सौ बहाने हैं,

तीर ए निगाह के रस्ते सभी नए हैं मगर
हमारे तौर तरीक़े सभी पराए हैं,

न रास आई हमें आप की अदा कोई
सितम है उस पे कि हम आप के दिवाने हैं,

ये क्या कि हौसला तुम ने अभी से हार दिया
अभी तो वक़्त ने कुछ और गुल खिलाने हैं,

सियाह रात की तारीकियाँ बजा लेकिन
नवेली सुब्ह के मंज़र अजब सुहाने हैं,

हर एक सम्त बलाओं का एक हुजूम सा है
तमाम हौसले अब दिल को आज़माने हैं,

नया तो कुछ भी नहीं तेरी दास्ताँ में चाँद
वही हैं दर्द के क़िस्से वही फ़साने हैं..!!

~महेंद्र प्रताप चाँद

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