मिल के बैठें तो हम कहीं पहले
बाँट लेते हैं क्यूँ ज़मीं पहले ?
होगा तेरा भी एतिबार मुझे
कर लूँ अपना मैं गिर यक़ीं पहले,
क्यूँ किसी दर पे आसमाँ झुकता
गर न झुकती मेरी जबीं पहले,
दिल में शायद अभी भी है मौजूद
आओ ढूँढे उसे यहीं पहले,
कब ये सुनते हैं दास्ताँ पूरी
बोल उठते हैं नुक्ता चीं पहले,
सोचता हूँ मैं सुन के बात तेरी
क्यूँ ये मैं ने कही नहीं पहले..??
~फ़रोग़ ज़ैदी

























