तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये ख़बर गई

तुझे कैसे इल्म न हो सका बड़ी दूर तक ये ख़बर गई
तेरे शहर ही की ये शाएरा तेरे इंतिज़ार में मर गई,

कोई बातें थीं कोई था सबब जो मैं वादा कर के मुकर गई
तेरे प्यार पर तो यक़ीन था मैं ख़ुद अपने आप से डर गई,

वो तेरे मिज़ाज की बात थी ये मेरे मिज़ाज की बात है
तू मेरी नज़र से न गिर सका मैं तेरी नज़र से उतर गई,

है ख़ुदा गवाह तेरे बिना मेरी ज़िंदगी तो न कट सकी
मुझे ये बता कि मेरे बिना तेरी उम्र कैसे गुज़र गई ?

वो सफ़र को अपने तमाम कर,गई रात आएँगे लौट कर
ये नसीम मैने सुनी ख़बर तो मैं शाम ही से सँवर गई..!!

~मुमताज़ नसीम

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