अश्क ज़ाएअ हो रहे थे देख कर रोता न था

अश्क ज़ाएअ हो रहे थे देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था,

सिर्फ़ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिए
मैं तो वो हूँ जो किसी की मौत पर रोता न था,

मुझ पे कितने सानहे गुज़रे पर इन आँखों को क्या
मेरा दुख ये है कि मेरा हमसफ़र रोता न था,

मैं ने उस के वस्ल में भी हिज्र काटा है कहीं
वो मेरे काँधे पे रख लेता था सर रोता न था,

प्यार तो पहले भी उस से था मगर इतना नहीं
तब मैं उस को छू तो लेता था मगर रोता न था,

गिर्या ओ ज़ारी को भी एक ख़ास मौसम चाहिए
मेरी आँखें देख लो मैं वक़्त पर रोता न था..!!

~तहज़ीब हाफ़ी


Discover more from Hindi Gazals :: हिंदी ग़ज़लें

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply