तूने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी
सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी,
शीश-महल को साफ़ किया तेरे कहने पर
आईनों से गर्द हटा दी शहज़ादी,
अब तो ख़्वाब कदे से बाहर पाँव रख
लौट गए हैं सब फ़रियादी शहज़ादी,
तेरे ही कहने पर एक सिपाही ने
अपने घर को आग लगा दी शहज़ादी,
मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहज़ादा
कैसे मुमकिन है ये शादी शहज़ादी..!!
~तहज़ीब हाफ़ी

























