ऐसा तूफ़ाँ है कि साहिल का नज़ारा भी नहीं
डूबने वाले को तिनके का सहारा भी नहीं,
की दुआ दुश्मन ने आख़िर मैं न कहता था तुम्हें
दोस्त जो मेरा नहीं है वो तुम्हारा भी नहीं,
डूबते देखा जो तूफ़ाँ में निगाहें फेर लीं
दोस्तों ने मुझ को साहिल से पुकारा भी नहीं,
ऐ निगाह ए शौक़ नज़्ज़ारा ये नज़्ज़ारा है क्या
आश्कारा भी है जल्वा आश्कारा भी नहीं,
आस रखता है करम की हो के महरूम ए करम
बे सहारा भी है पुरनम बे सहारा भी नहीं..!!
~पुरनम इलाहाबादी
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