दिल में बस जान सा मैं रहता हूँ

दिल में बस जान सा मैं रहता हूँ
ख़ुद में मेहमान सा मैं रहता हूँ,

कितने आबाद दिल किए मैंने
ख़ुद में वीरान सा मैं रहता हूँ,

दिल दुखाते हो तुम मेंरा जब भी
हाँ परेशान सा मैं रहता हूँ,

एक उजड़े मकान में जैसे
बिखरे सामान सा मैं रहता हूँ,

जंग लड़ता हूँ रात दिन ख़ुद से
देख सुल्तान सा मैं रहता हूँ,

तुम नहीं समझे मुझ को हैरत है
कितना आसान सा मैं रहता हूँ,

तुम गए जब से छोड़ कर मुझ को
तब से अंजान सा मैं रहता हूँ..!!

~इरशाद अज़ीज़


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