ये सोच कर न माइल ए फ़रियाद हम हुए

ये सोच कर न माइल ए फ़रियाद हम हुए
आबाद कब हुए थे कि बर्बाद हम हुए,

होता है शाद काम यहाँ कौन बा ज़मीर
नाशाद हम हुए तो बहुत शाद हम हुए,

परवेज़ के जलाल से टकराए हम भी हैं
ये और बात है कि न फ़रहाद हम हुए,

कुछ ऐसे भा गए हमें दुनिया के दर्द ओ ग़म
कू ए बुताँ में भूली हुई याद हम हुए,

जालिब तमाम उम्र हमें ये गुमाँ रहा
उस ज़ुल्फ़ के ख़याल से आज़ाद हम हुए..!!

~हबीब जालिब

हम ने सुना था सहन ए चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं

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