तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मेरे दिल से बोझ उतार दो

तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मेरे दिल से बोझ उतार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो,

मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मेरे ख़ाल ओ ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मेरे सारे रंग उतार दो,

किसी और को मेरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो..!!

~ऐतबार साजिद

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