तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मेंरी पहली मोहब्बत थी मेंरी आख़िरी दोस्त ,
लोग हर बात का अफ़्साना बना देते हैं
ये तो दुनिया है मेंरी जाँ कई दुश्मन कई दोस्त,
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमरबेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त,
याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त,
अब भी आए हो तो एहसान तुम्हारा लेकिन
वो क़यामत जो गुज़रनी थी गुज़र भी गई दोस्त,
तेरे लहजे की थकन में तेरा दिल शामिल है
ऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त,
बारिश ए संग का मौसम है मेंरे शहर में तो
तू ये शीशे सा बदन ले के कहाँ आ गई दोस्त,
मैं उसे अहद शिकन कैसे समझ लूँ जिसने
आख़िरी ख़त में ये लिखा था फ़क़त आपकी दोस्त..!!
~अहमद फ़राज़
Discover more from Hindi Gazals :: हिंदी ग़ज़लें
Subscribe to get the latest posts sent to your email.