तेरे चेहरे की तरह और मेरे सीने की तरह
मेरा हर शेर दमकता है नगीने की तरह,
फूल जागे हैं कहीं तेरे बदन की मानिंद
ओस महकी है कहीं तेरे पसीने की तरह,
ऐ मुझे छोड़ के तूफ़ान में जाने वाली
दोस्त होता है तलातुम में सफ़ीने की तरह,
ऐ मेरे ग़म को ज़माने से बताने वाली
मैं तेरा राज़ छुपाता हूँ दफ़ीने की तरह,
तेरा वादा था कि इस माह ज़रूर आएगी
अब तो हर रोज़ गुज़रता है महीने की तरह..!!
~मुस्तफ़ा ज़ैदी
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