सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है
अभी अज़ान की आवाज़ आने वाली है,
तुझे यक़ीन तो शायद न आएगा लेकिन
ये सुब्ह कोई करिश्मा दिखाने वाली है,
किसे ख़बर है कि आँधी चलाए पेड़ गिराए
यही हवा जो पतंगें उड़ाने वाली है,
समेट बिखरे हुए काग़ज़ात को अपने
कोई सदा तुझे वापस बुलाने वाली है,
तुझे भी ज़ुल्म से फ़ुर्सत न मिल सकेगी कभी
मेंरी अना भी कहाँ सर झुकाने वाली है,
मेंरी ग़ज़ल पे नए लोग क्यूँ तड़पते हैं ?
मेंरी ग़ज़ल तो पुराने ज़माने वाली है..!!
~वाली आसी

























