पर्दा ए शब की ओट में ज़ोहरा जमाल खो गए

पर्दा ए शब की ओट में ज़ोहरा जमाल खो गए
दिल का कँवल बुझा तो शहर तीरा ओ तार हो गए,

एक हमें ही ऐ सहर नींद न आई रात भर
ज़ानू ए शब पे रख के सर सारे चराग़ सो गए,

राह में थे बबूल भी रूद ए शरर भी धूल भी
जाना हमें ज़रूर था गुल के तवाफ़ को गए,

दीदावरो बताएँ क्या तुम को यक़ीं न आएगा
चेहरे थे जिन के चाँद से सीने में दाग़ बो गए,

दाग़ ए शिकस्त दोस्तो देखो किसे नसीब हो
बैठे हुए हैं तेज़ रौ सुस्त ख़िराम तो गए,

अहल ए जुनूँ के दिल शकेब नर्म थे मोम की तरह
तेशा ए यास जब चला तूदा ए संग हो गए..!!

~शकेब जलाली


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