पगडंडी पर छाँवो जैसा कुछ नहीं दिखता
गाँवों में अब गाँवों जैसा कुछ नहीं दिखता,
कथनी सबकी कड़वी कड़वी, करनी टेढ़े मेढ़े
बरक़त और दुआओं जैसा कुछ नहीं दिखता,
बिछुआ, पैरी, लाल महावर, रुनझुन करती पायल
गोरी के गोरे गोरे पाँवो जैसा कुछ नहीं दिखता,
राधा, मुनिया, धनिया, सीता जींस पहनती है
अब उन शोख़ अदाओं जैसा कुछ नहीं दिखता,
बरगद, ईमली, महुआ, पीपल, शीशम, नीम के
अब शीतल मंद हवाओ जैसा कुछ नहीं दिखता,
जब से पंचायत में सियासत की गहरी पैठ हुई
तबसे इनमे ग्राम सभाओ जैसा कुछ नहीं दिखता..!!