माशूक़ अजब चीज़ है दे जिसको ख़ुदा दे
हँसते को रुला दे यही रोते को हँसा दे,
मशहूर तो ये है जिसे जो चाहे ख़ुदा दे
हम किस से कहें दर्द दिया है तो दवा दे,
फिर मुझ को सताना मगर ऐ दीदा ए पुर ख़ूँ
इस बज़्म में भी आज ज़रा रँग जमा दे,
या मौत मुझे आए कि ये हाल न देखूँ
या ऐ दिल ए बीमार ख़ुदा तुझ को शिफ़ा दे,
तस्वीर वो तस्वीर नज़र जिस पे फ़िदा हो
आवाज़ वो आवाज़ जो कानों को मज़ा दे,
हाँ अपने करम पर तो बहुत नाज़ है लेकिन
तेरा ही जो तालिब हो बता फिर उसे क्या दे,
तासीर ए सुख़न कस्ब से हासिल नहीं होती
ये देन ख़ुदा की है सफ़ी जिस को ख़ुदा दे..!!
~सफ़ी औरंगाबादी
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