मैंने ये कब कहा है कि वो मुझ को तन्हा नहीं छोड़ता

मैंने ये कब कहा है कि वो मुझ को तन्हा नहीं छोड़ता
छोड़ता है मगर एक दिन से ज़्यादा नहीं छोड़ता,

कौन सहराओं की प्यास है इन मकानों की बुनियाद में
बारिशों से अगर बच भी जाएँ तो दरिया नहीं छोड़ता,

दूर उम्मीद की खिड़कियों से कोई झाँकता है यहाँ
और मेरे गली छोड़ने तक दरीचा नहीं छोड़ता,

मैं जिसे छोड़ कर तुम से छुप कर मिला हूँ अगर आज वो
देख लेता तो शायद वो दोनों को ज़िंदा नहीं छोड़ता,

कौन ओ इमकान में दो तरह के ही तो शोबदाबाज़ हैं
एक पर्दा गिराता है और एक पर्दा नहीं छोड़ता,

सच कहूँ मेरी क़ुर्बत तो ख़ुद उस की साँसों का वरदान है
मैं जिसे छोड़ देता हूँ उस को क़बीला नहीं छोड़ता,

तयशुदा वक़्त पर वो पहुँच जाता है प्यार करने वसूल
जिस तरह अपना क़र्ज़ा कभी कोई बनिया नहीं छोड़ता,

पहले मुझ पर बहुत भौंकता है कि मैं अजनबी हूँ कोई
और अगर घर से जाने का बोलूँ तो कुर्ता नहीं छोड़ता,

लोग कहते हैं तहज़ीब हाफ़ी उसे छोड़ कर ठीक है
हिज्र इतना ही आसान होता तो तौंसा नहीं छोड़ता..!!

~तहज़ीब हाफ़ी

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