कुछ इस अदा से वो मेरे दिल ओ नज़र में रहा

कुछ इस अदा से वो मेरे दिल ओ नज़र में रहा
ब क़ैद ए होश भी मैं आलम ए दिगर में रहा,

ख़ुद अपनी ज़ात पे मुझको भी इख़्तियार न था
तमाम उम्र मैं एक हल्क़ा ए असर में रहा,

वो इश्क़ जिसकी ज़माने को भी ख़बर न रही
तेरे बिछड़ने से रुस्वा नगर नगर में रहा,

रह ए हयात में तेरी रिफाक़तें न सही
तेरा ख़याल तो हरदम मुझे सफ़र में रहा,

ग़म ए ज़माना ने किस को मफ़र है ऐ नादिर
सुकून ए क़ल्ब कहाँ अब किसी हुनर में रहा..??

~अतहर नादिर

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