कुछ अब की बार तो ऐसा बिफर गया पानी
बहा के ले गया हर शय जिधर गया पानी,
ये अलमिया भी अजब है कि दश्त से दरिया
पलट के पूछ रहा है किधर गया पानी,
किसी भी नल में नहीं कोई एक बूँद मगर
हर एक मकान के कमरों में भर गया पानी,
धनक के रंग उभर आए क़तरे क़तरे में
तुम्हारे जिस्म को छू कर निखर गया पानी,
है आम शहर में दस्तूर बे हिजाबी का
हर एक शख़्स की आँखों का मर गया पानी,
मैं तिश्ना बख़्त उसे हाथ भी लगा न सका
मेंरे क़रीब से हो के गुज़र गया पानी,
किसी बदन में हुनर ज़ीस्त का नहीं आसिम
हुआ भी क्या जो सरों से उतर गया पानी..!!
~आसिम वास्ती

























