कोई काबा न कलीसा न सनम मेरा है

कोई काबा न कलीसा न सनम मेरा है
एक नए ख़्वाब की धरती पे क़दम मेरा है,

सारी दुनिया से हमा वक़्त जुड़ा रहता हूँ
राब्ता ख़ुद से मगर आज भी कम मेरा है,

दिल को एहसास के उस मोड़ पे लाई है हयात
अब न मेरी है ख़ुशी और न ग़म मेरा है,

अब भी डरता हूँ हर एक बात में लिखने से फ़रोग़
तुम ये कहते हो कि आज़ाद क़लम मेरा है..!!

~फ़रोग़ ज़ैदी

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply