कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है
वो एक शख़्स जो सचमुच ख़ुदाओं जैसा है,
हमारी शम ए तमन्ना भी जल के ख़ाक हुई
हमारे शोलों का आलम चिताओं जैसा है,
वो बस गया है जो आ कर हमारी साँसों में
जभी तो लहजा हमारा दुआओं जैसा है,
तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत
हमारे शहर का मंज़र भी गाँवों जैसा है,
वो एक शख़्स जो हम से है अजनबी अब तक
ख़ुलूस उस का मगर आश्नाओं जैसा है,
हमारे ग़म में वो ज़ुल्फ़ें बिखर गईं नासिर
जभी तो आज का मौसम भी छाँवों जैसा है..!!
~हकीम नासिर