जिस को भी देखो तेरे दर का पता पूछता है

जिस को भी देखो तेरे दर का पता पूछता है
क़तरा क़तरे से समुंदर का पता पूछता है,

ढूँढता रहता हूँ आईने में अक्सर ख़ुद को
मेरा बाहर मेरे अंदर का पता पूछता है,

ख़त्म होते ही नहीं संग किसी दिन उस के
रोज़ वो एक नए सर का पता पूछता है,

ढूँढते रहते हैं सब लोग लकीरों में जिसे
वो मुक़द्दर भी सिकंदर का पता पूछता है,

मुस्कुराते हुए मैं बात बदल देता हूँ
जब कोई मुझ से मेरे घर का पता पूछता है,

दर ओ दीवार हैं मेरे ये ग़ज़ल के मिसरे
क्या सुख़नवर से सुख़नवर का पता पूछता है..!!

~राजेश रेड्डी

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