हर घड़ी आफ़ियत हर घड़ी शुक्रिया
हासिल ए ज़िंदगी आगही शुक्रिया,
मुझ को मर कर भी एक ज़िंदगी मिल गई
दोस्तों को दुआ शायरी शुक्रिया,
घर की दीवार बातें समझने लगी
अब ज़रूरत नहीं आप की शुक्रिया,
फ़िक्र ए दुनिया ओ दीं अब न उलझा मुझे
आख़िरी दरगुज़र आख़िरी शुक्रिया,
दर मुक़फ़्फ़ल हुए चिलमनें गिर गईं
एक खिड़की खुली रह गई शुक्रिया,
हो चला है यक़ीं गुल्सिताँ है मेरा
फूल ख़ुशबू सबा चाँदनी शुक्रिया,
ढूँढ लाया हूँ इक़रार पाताल से
एक क़ौस ए क़ुज़ह रौशनी शुक्रिया..!!
~इक़रार मुस्तफ़ा

























