हर एक बात पे मुस्कुराता है झूठा
कोई गम तो है जो छुपाता है झूठा,
सब ख़ुश है, सब राज़ी है मुल्क में
ये काहे का नाटक दिखाता है झूठा,
कोई घर पे जैसे उसका मुन्तज़िर हो
हर भरी बज़्म यूँ छोड़ जाता है झूठा,
हुए खत्म जिनसे है सब के मरासिम
क्यूँ अहवाल उनके सुनाता है झूठा,
वो सूरत किसी की भी सूरत नहीं है
जो सूरत जहाँ को दिखाता है झूठा,
कहीं असली चेहरा न उसका दिखा दे
हमेशा नज़र आइनों से चुराता है झूठा..!!