हम तो शायद यहाँ के थे ही नहीं
इस ज़मीं आसमाँ के थे ही नहीं,
तन्हा तन्हा ही तय किया है सफ़र
हम किसी कारवाँ के थे ही नहीं,
अपने दिल में न दी जगह उस ने
हम मकीं उस मकाँ के थे ही नहीं,
मौसम ए गुल में भी न खुल पाए
फूल जो गुल्सिताँ के थे ही नहीं,
तुम को साहिल अमाँ वो क्या देते ?
जो कि क़ाइल अमाँ के थे ही नहीं..!!
~राम चंद्र वर्मा साहिल
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