गुलाबी होंठों पे मुस्कराहट
सजा के मिलते तो बात बनती,
वो चाँद चेहरे से काली ज़ुल्फें
हटा के मिलते तो बात बनती,
मुझे भी ख़ुद पे गुरुर होता
मुझे भी हासिल सुरूर होता,
अगर वो आँखों से रोज़ मुझ को
पिला के मिलते तो बात बनती,
दुखो की तारीकियों में जानां
न मैं भटकता न वो भटकते
दीये वफ़ा के दिल ओ निगाह में
जला के मिलते तो बात बनती,
बहार की इस सुहानी रुत में
मुझे भी चैन ओ क़रार मिलता
अगर वो दाँतों में सुर्ख आँचल
दबा के मिलते तो बात बनती..!!