फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
हम परेशाँ ही रहे अपने ख़यालों की तरह,
शीशागर बैठे रहे ज़िक्र ए मसीहा ले कर
और हम टूट गए काँच के प्यालों की तरह,
जब भी अंजाम ए मोहब्बत ने पुकारा ख़ुद को
वक़्त ने पेश किया हम को मिसालों की तरह,
ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं
याद हम आएँगे दुनिया को हवालों की तरह..!!
~सुदर्शन फ़ाकिर